आरोह

समुच्छ्रय

विस्तारो विटपः प्रोक्त आरोहस्तु समुच्छ्रयः ॥ १८१ ॥
verse 2.1.1.181
page 0023

आरोह

नितम्ब, कटी, कटीर, त्रिकस्थान

आरोहश्च नितम्बः कटी कटीरं त्रिकस्थानम् ॥ ५१२ ॥
verse 2.1.1.512
page 0059