संवेशन
निधुवन, सम्प्रयोग, रहस्, रति, सुरत, मोहन
संवेशनं निधुवनं सम्प्रयोगो रहो रतिः ।
सुरतं मोहनं प्रोक्तं मणितं रतकूजितम् ॥ ५६९ ॥
verse 2.1.1.569
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रहस्
प्रच्छन्न, एकान्त, निःशलाक, उपह्वर, उपांशु, विजन
रहः प्रच्छन्नमेकान्तं निःशलाकमुपह्वरम् ।
उपांशु विजनं प्रोक्तं रहस्यं गुह्यमुच्यते ॥ ७०८ ॥
verse 4.1.1.708
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वीकाश
स्फुट, रहस्
वीकाशः स्फुटरहसोः काष्ठा कालप्रकर्षयोः ॥ ८३७ ॥
verse 5.1.1.837
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