संवेशन

निधुवन, सम्प्रयोग, रहस्, रति, सुरत, मोहन

संवेशनं निधुवनं सम्प्रयोगो रहो रतिः ।
सुरतं मोहनं प्रोक्तं मणितं रतकूजितम् ॥ ५६९ ॥
verse 2.1.1.569
page 0064

व्यवाय

सुरत

सुरतेऽपि व्यवायः स्यान्नैगमश्च ऋतावपि ॥ ८१५ ॥
verse 5.1.1.815
page 0094